*वाराणसी में “ऑयल बॉल” तकनीक के माध्यम से मच्छरों के लार्वा पर होगा नियंत्रण*
*मुख्य विकास अधिकारी हिमांशु नागपाल की पहल पर इजात हुई नवीन तकनीक*
*‘माँ लक्ष्मी’ स्वयं सहायता समूह की महिलाएं तैयार कर रही ‘ऑयल बॉल’, मिल रहा रोजगार सृजन*
*प्रायौगिक अध्ययन पूर्णरूप से रहा सफल, अब नगर व ग्रामीण के चिन्हित हॉट स्पॉट क्षेत्रों में होगा प्रयोग*
*कई दिनों से जल जमाव वाले खाली प्लाटों और गड्ढों में डाली जाएंगी ‘ऑयल बॉल’*
*लार्वा को नहीं मिलेगी ‘ऑक्सीज़न’ तो नहीं पनपेंगे मच्छर, घनत्व भी होगा कम*
जनपद में एंटी लार्वा छिड़काव और फोगिंग से मच्छरों के लार्वा की रोकथाम और घनत्व को कम किया जा रहा है। इसी कड़ी में *मुख्य विकास अधिकारी हिमांशु नागपाल* की पहल पर मच्छरों के लार्वा की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए एक नई तकनीक इजात की गई है। “ऑयल बॉल के माध्यम से मच्छरों के लार्वा नियंत्रण” तकनीक का प्रायौगिक अध्ययन सफल होने के बाद इसको नगर व ग्रामीण क्षेत्र के चिन्हित हॉट स्पॉट इलाकों में उपयोग किया जाएगा। इन ऑयल बॉल को पानी से भरे उन खाली प्लाटों और गड्ढों में डाला जाएगा, जहां मच्छरों के लार्वा पनपने की बहुत अधिक संभावनाएं रहती हैं। इस पहल में स्वयं सहायता समूह की महिलाओं का खास योगदान है।
*जिला मलेरिया अधिकारी शरत चंद पाण्डेय* ने बताया कि मुख्य विकास अधिकारी हिमांशु नागपाल की पहल व निर्देशन पर विगत माह 15 से 20 दिन का प्रायौगिक अध्ययन किया गया, जिसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं। यह अध्ययन सीर गोवर्धन क्षेत्र के काशीपुरम कॉलोनी के जल जमाव वाले खाली प्लाटों, नालियों और गड्ढों में किया गया था, जोकि खाली प्लाटों और गड्ढों में पूरी तरह से सफल रहा। यह ‘ऑयल बॉल’ पिंडरा ब्लॉक के पतिराजपुर गाँव की स्वयं सहायता समूह ‘माँ लक्ष्मी महिला समूह’ अपने रोजगार सृजन को बढ़ाने के लिए तैयार कर रही हैं।
*ऑयल बॉल विधि –* लकड़ी के बुरादे को कपड़े की पोटली में बांधकर छोटे-छोटे बॉल बनाए गए तथा इन्हें निष्प्रयोज्य इंजन ऑयल में डुबोया जाता है। इस बॉल को ठहरे हुए जल में डाला जाता है, जिससे ऑयल की परत धीरे-धीरे पानी की सतह पर फ़ेल जाती है, इस कारण मच्छरों के लार्वा को ऑक्सीज़न की उचित मात्रा नहीं मिल पाती और लार्वा नष्ट हो जाता है। ऑयल बॉल के लार्वा नाशक के रूप में प्रयोग के लिए काशीपुरम कॉलोनी के जल जमाव वाले स्थलों में प्रायौगिक अध्ययन किया गया।
*इस तरह हुआ प्रायौगिक अध्ययन –*
– एक खाली प्लाट जिसमें कई महीनों से पानी भरा था, जिसमें लार्वा पाया गया। लार्वा घनत्व 10 था। ऑयल बॉल का प्रयोग किया गया। 24 घंटे के उपरांत ऑयल बॉल के चारों ओर ऑयल की परत पानी की सतह पर लगभग तीन मीटर की परिधि में फ़ेल गई, जिससे लार्वा की संख्या में गिरावट देखी गई। लार्वा घनत्व दो पाया गया।
– एक बड़ी नाली, जिसमें काफी संख्या में लार्वा थे। वहाँ बॉल का प्रयोग किया गया। 24 घंटे के बाद अध्ययन में देखा गया कि ऑयल बॉल 20 से 30 सेमी की परिधि में लार्वा नष्ट हुए परंतु 50 सेमी के लार्वा जीवित थे। वनस्पतियों और कचरे की वजह से नाली जाम थी, जिस वजह से ऑयल का फैलाव पूर्णरूप से नहीं हो सका। इस कारण नाली में इसका प्रयोग विफल रहा।
– कच्ची जमीन में दो मीटर की परिधि वाले गंदे पानी से भरे गड्ढे में ऑयल बॉल का प्रयोग किया गया। यहाँ वनस्पति और कचरा नहीं था। इससे ऑयल का फैलाव पानी की सतह पर दिखने लगा, जिससे लार्वा की संख्या में गिरावट देखी गई। यह प्रयोग सफल रहा।
*कारगर है प्रयोग –* जिला मलेरिया अधिकारी ने बताया कि इस प्रयोग के पूर्व काफी अध्ययन किया गया। अंतर्राष्ट्रीय शोध अध्ययन के प्रयोग का अध्ययन भी किया गया, जोकि मच्छरों के लार्वा को नष्ट करने में बेहद कारगर है। स्वयं सहायता समूह की ओर से निर्मित किए जा रहे एक ऑयल बॉल लगभग 50 मिली इंजन ऑयल अवशोषित करता है। इस तरह एक बीघा (करीब 50 मी लंबे और 50 मी चौड़े) वाले पानी से भरे हुए खाली प्लॉट के लिए लगभग आठ ऑयल बॉल चाहिए होंगे।
आगे की प्रक्रिया –* उन्होंने बताया कि *मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ संदीप चौधरी* के निर्देशन में आगे की प्रक्रिया की जाएगी। *नगर आयुक्त अक्षत वर्मा* के नेतृत्व में शहर के और *जिला पंचायती राज अधिकारी आदर्श कुमार पटेल* के नेतृत्व में ग्रामीण के चिन्हित हॉट स्पॉट क्षेत्रों में ऑयल बॉल को पानी से भरे खाली प्लाटों और गड्ढों में डाला जाएगा। इसका प्रयोग मुख्य एंटी लार्वा गतिविधियों जैसे टेमीफास स्प्रे, बीटीआई स्प्रे, एवं फोगिंग गतिविधियों के साथ-साथ एक अन्य सहयोगी विकल्प व विधि के रूप में किया जाएगा।8